“भगवान् श्रीकृष्ण”
माया मिली न राम वाली कहावत सार्थक न हो जाए इस बात का ध्यान एक साधक को जरुर करना चाहिये…
जब भगवान को वनवास होता है तो लक्ष्मण जी भी भगवान के साथ चलने को कहते है
भगवान कहते है कि जाकर माता सुमित्रा जी से आज्ञा मांग लाओ,
तब लक्ष्मण जी माता सुमित्रा जी के पास जाते है और माता सुमित्रा जी बहुत सा उपदेश देकर अंत में कहती है.
और केवल लक्ष्मण जी को ही नहीं हम सभी के लिए शिक्षा दे रही है,
कि एक साधक को कैसा होना चाहिये.
सेवा में कौन कौन-सी बाधाएं है और इन बाधाओं को सेवा के बीच कभी नहीं लाना चाहिये.
सुमित्रा जी कहती है. –
“रागु रोषु इरिषा मदु मोहू,
जनि सपनेहुँ इन्ह के वासहोहू सकल प्रकार विकार बिहाई,
मन क्रम वचन करहू सेवकाई”
सुमित्रा जी ने लक्ष्मण के माता पिता तो पहले ही राम और सीता जी को बना दिया.
फिर स्वयं अपने नाम को सार्थक करती हुई सुमित्रा अर्थात जो अच्छी मित्र हो,
हितेषी हो, आगे कितनी अच्छी बात कहती है कि राग, रोष, ईर्ष्या, मद, मोह, इनके वश स्वप्न में भी मत होना.
अर्थात परिवार से “राग”,
ककैयी के प्रति “रोष” ,
भरत से “ईर्ष्या” ,
मै भगवान की सेवा कर रहा हूँ ये “मद”, और और पत्नी के प्रति “मोह” ,
इन सब प्रकार के विकारों का त्याग कर मन, वचन और कर्म से श्री सीता राम जी की सेवा करना.
और लक्ष्मण जी ने ऐसा ही किया,
और जब नीद को भी त्यागा तब एक दिन निद्रा देवी लक्ष्मण जी के पास आई,
और बोली –
तुमने मुझे जीत लिए है,
मै तुमसे प्रसन्न हूँ,
कोई वर मांगो,
तब लक्ष्मण जी ने कहा
आप यदि प्रसन्न है तो अयोध्या में उर्मिला के पास जाईये,
तब निद्रा देवी उर्मिला जी के पास गई और उनसे कहा-
तुम्हारे पति ने मुझसे जीता है और मै बहुत प्रसन्न हूँ और आपसे वर मांगने को कहा है अतः आप वर मांगिये.
तब उर्मिला जी बोली –
कि यदि आप प्रसन्न है तो इतना वर दीजिये,कि चौदह वर्षों तक कभी भी मेरे पति को मेरी याद न आये,
कितनी बडी बात यहाँ उर्मिला जी कह रही है,
जिन्होंने अपने नाम को सार्थक किया है,
अर्थात “उर” “मिला” ,
अपने उर को अन्तः करण को मिलाया है.
शारीरक वासना का जहाँ कोई काम ही नहीं है.
और ऐसा ही क्यों माँगा उर्मिला जी ने क्योकि उर्मिला जी जानती है कि भगवत सेवा में भोगो का सर्वोपरि त्याग होना चाहिये और लक्ष्मण जी के महान त्याग में यदि एक बार भी उर्मिला जी कि याद आती तो मोह आ जाता इसलिए वे कहती है कि मेरी याद नहीं आनी चाहिये,
और ये हम सब के लिए शिक्षा है.
कि भगवान की सेवा में भोगो का त्याग करने चले,
दो नाव की सवारी में माया मिली न राम वाली कहावत सार्थक न हो जाए इस बात का ध्यान एक साधक को जरुर करना चाहिये
टेढ़े कान्हा
एक बार की बात है – वृंदावन का एक साधू अयोध्या की गलियों में राधे कृष्ण – राधे कृष्ण जप